प्यादों की शहादत

शतरंज की बाजी खत्म हो चुकी थी। काले-सफेद सभी प्यादे एक ही डिब्बे में बंद थे। बिसात एक ओर शांति की साँसें ले रही थी। दोनों राजा प्यादों के बीच ही मुँह छुपाए पड़े थे। रानियाँ बेसुध-सी पड़ी थीं। काले प्यादे ने सफेद प्यादे से कहा, “एक बात समझ में नहीं आई। हमारा राजा तो तुम्हारे राजा के साथ ही डिब्बे में बंद है। तुम्हारी और हमारी पूरी सेना भी बेजान-सी पड़ी है, फिर यह जंग कौन लड़ रहा था? हम किसके लिए एक-दूसरे को काट रहे थे? तुम सफेद राजा की ओर से मुझे मारने आए थे, हालाँकि मैंने कब तुम्हें मार दिया, मुझे पता नहीं। मैं तो अभी सोच ही रहा था कि तुमपर हमला करूँ या नहीं, तब तक तुम डिब्बे में पड़े थे और पीछे से हाथी ने आकर मेरा भी काम तमाम कर दिया। मुझे लगा कि तुम्हारा राजा जीत गया होगा। उसके नाम पर बड़ा राज कायम हो जाएगा, लेकिन वह तो हमारे साथ ही पिटा पड़ा है।”
सफेद सिपाही सिर खुजा रहा था। वह खुद को अक्लमंद मानता था, जैसा कि सिपाही को मानना चाहिए और इसी मुगालते में वह अपने राजा के लिए जान लुटाने को तैयार रहता था, जैसा कि उसे तैयार रहना ही चाहिए। वह जान लुटा भी चुका था, मगर काले सिपाही के सवाल ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने सोचते हुए कहा, “देखो दोस्त, मुझे तो दो हाथ दिख रहे थे। दोनों में कोई अंतर नहीं था। एक हाथ आगे बढ़ता तो सफेद प्यादा कटता। दूसरा हाथ आगे बढ़ता तो काला प्यादा कट जाता। अंत में दोनों हाथ आपस में मिल गए और हम कटकर बिसात से बाहर हो गए। मैं तो अपने राजा की जीत के लिए लड़ रहा था, लेकिन अब लग रहा है कि हमारा राजा भी किसी का सिपाही ही था। उसे तो हिलने की इजाजत भी नहीं थी। बमुश्किल अपनी जगह से आगे-पीछे हो सकता था, लेकिन जंग उसी के नाम पर हो रही थी। अब देखो, राजा तो राजा बिसात भी यहीं पड़ी है, इसका मतलब कि जंग की तरह यह बिसात भी नकली थी। हमें तो कहा गया कि हम शहीद हो गए, मगर किसके लिए? यहाँ तो जंग भी नकली और बिसात भी।” 
दोनों सिपाही थोड़ी देर चिंतन करते रहे, फिर उन्होंने सोचा कि बड़े प्यादे से पूछा जाए। छोटे प्यादों को तो अगले मोर्चे पर जान देनी होती है। बड़े प्यादे अंदर के मोर्चे पर जान लुटाते हैं, राजा के करीब भी होते हैं और करीबी भी, सो उन्हें जरूर अंदर की बात पता होगी कि यह जंग किसके लिए लड़ी जा रही थी? आखिर इस जंग से किसे फायदा हुआ? दोनों ने आगे बढ़कर हाथी को जगाया। हाथी चूँकि एक कोने पर डटा रहता है और पूरे देश की हिफाजत करता है, सो उसे राजा का खास माना जाता है। उसने यह सवाल सुना तो उसने सिपाहियों को घूरा—“तुम लोग अपनी औकात से अधिक अक्ल लगा रहे हो। भूल गए राजा का फरमान कि नमक और अक्ल उतनी ही लगाओ, जितनी बर्दाश्त हो जाए। सिपाही होकर सोचने लगे हो! कल फिर जंग होगी, फिर बिसात पर बिछा दिए जाओगे। फिर शहीद होकर डिब्बे में बंद हो जाओगे। सोचना छोड़ो और लंबी तानकर सो जाओ। प्यादे सोचा नहीं करते, शहीद हुआ करते हैं।”
चूँकि हाथी सफेद था, इसलिए खास था, सफेद सिपाही ने उसे अपना सगा मानकर फिर से सवाले किया—“दादा, बता दो न यह जंग कौन लड़ रहा था? दोनों राजा तो हमारी तरह मुँह छिपाए पड़े हैं। कल कौन किससे लड़ेगा? रोज बिसात क्यों बिछा दी जाती है। हम प्यादे ही क्यों मारे जाते हैं? वे हाथ जो राजा के पीछे होते हैं, उन्हें कोई क्यों नहीं मारता? जानते हो तो बता दो, नहीं तो अपनी हार स्वीकार कर लो।”
गुस्सा तो हाथी को बहुत आया कि एक पिद्दी सा प्यादा चुनौती दे रहा है, लेकिन बिसात के बाहर किसी को किसी से दुश्मनी नहीं थी। सब एक-दूसरे के मित्र थे, बस बिसात बिछते ही जान के प्यासे हो जाते थे, अलबत्ता उन्हें कारण पता नहीं होता था। उनकी तो अपनी इच्छा भी नहीं होती थी। एक हाथ पीछे से आया और उठाकर इसकी सीध में डाल गया। उसके पीछे लगा गया, किसी के घात में लगा गया। प्यादों को तो कटने के बाद ही पता चलता था कि कौन उन्हें काट गया, जबकि चालें बहुत पहले ही तय हो जाती थीं। उसने प्यार से प्यादे को पुचकारा—“प्यारे भाई, कटना और काटना हमारा धर्म है। हम प्यादे हैं, हमें मालिक के इशारों पर बिसात पर नाचना होता है। अपने दिमाग को क्यों कष्ट दे रहे हो? मालिक को पता चला कि तुम सोचने लगे हो तो तुम्हारी जगह नया प्यादा डाल देगा। तुम कचरे के ढेर पर फेंक दिए जाओगे। जहाँ कुत्ते आकर तुम्हें सूँघेंगे। मैं तो बस इतना ही जानता हूँ कि यह जंग शौकिया लड़ी जा रही थी। किसी बड़े आदमी को मनोरंजन करना था तो उसने बिसात बिछा दी और दूसरे बड़े आदमी को खेलने के लिए कहा।”
“यानी जंग नहीं, खेल हो रहा था? और वह भी मनोरंजन के लिए। हम बिना मतलब ही मारे गए। आप तो इतने शक्तिशाली हैं दादा, आप विरोध क्यों नहीं करते?”
हाथी ने मुँह ढककर ठहाका लगाया—“पगले हमारी जो ताकत है, वह उसी की दी हुई है। हम तो बस कठपुतलियाँ हैं, उसके इशारे पर हमें नाचना होता है। वह जब चाहे हमें कठपुतली से काठ बना दे। तुम अपने को सचमुच के सिपाही मत समझने लगना। नहीं तो कहीं के नहीं रहोंगे।”
हाथी मुँह ढककर सो गया। सिपाही को गुस्सा भी आया और रोना भी। उसके साथी काले सिपाही ने साहस करके पूछा, “क्यों न हम राजा साहब के पास जाकर अपनी फरियाद करें। आखिर हम उनके सिपाही हैं। उनसे ही पूछ लें कि हमारी शहादत से खेलने वाला सख्श कौन है? किसको सिपाहियों की लाशें बिछाकर इतना मजा आता है कि जब-तब बिसात बिछाकर दुनिया भर के सैनिकों को लड़ाने लगता है।”
सफेद सिपाही सिर झुकाए चुपचाप खड़ा था। उसको हाथी की बात याद आ रही थी कि हम सब कठपुतलियाँ हैं। आखिर राजा भी तो इसी डिब्बे में बंद है। उसकी औकात भी हमारे जितनी ही है। बस स्थान का अंतर है, वह राजा के खाने में है, राजा नहीं है। उसने काले सिपाही को यह बात बताई, लेकिन वह राजा से बात करने की जिद पर अड़ा रहा। हार मानकर सिपाही ने राजा के बगल में जाकर बैठना उचित समझा। जब वह जगेगा, तब बात होगी, लेकिन वह जगे तो तब, जब सोया हुआ हो। उसकी आँखों के आगे उसके बंधु-बांधव मार दिए गए थे। वह पूरी ताकत से लड़ रहा था। अभी उसके पास एक हाथी और दोनों घोड़े बचे हुए थे। बेगम शहीद हो चुकी थी। वह चाहता था कि बेगम का गम भुलाकर जी जान से जुट जाए, लेकिन तभी दोनों हाथों ने आपस में समझौता कर लिया। पता चला कि खेल ड्रॉ हो गया। ड्रॉ हुआ या कराया गया? जीत को हार में बदल दिया गया! अजीब खेल है, रोज कोई-न-कोई राजा अपने परिवार सहित मारा जा रहा है। रोज हजारों सैनिक शहीद हो रहे हैं और ये हाथ आपस में मिल जा रहे हैं। खेल ड्रॉ करा रहे हैं। उसको नींद नहीं आ रही थी। शुकून के लिए उसने धीरे से आँखें खोलीं तो उसने अपने सैनिकों को सामने देखा, जो एकटक उसे ही देखे जा रहे थे। वह हौले से मुसकराया, बिसात पर चाहे वह राजा हो, लेकिन यहाँ तो प्यादा ही है। एक पिटा हुआ प्यादा। उसको मुसकराता हुआ देखकार सिपाही की हिम्मत बढ़ी, उसने पहले तो झुककर सलाम किया, फिर बड़े अदब से बोला, “हुजूर कल की जंग हम जीत सकते थे। हमारे दोनों घोड़े बिल्कुल सुरक्षित दूरी पर हमले को तैयार थे। एक झपट्टे में जंग हमारी मुट्ठी में होती, लेकिन आपने समझौता कर लिया।”
“मैंने न जंग की, न समझौता किया। मुझे राजा के खाने में बिठा दिया गया। चालें पीछे से चली जा रही थीं। गोटियाँ पीछे से सेट की जा रही थीं। प्यादों को एक-दूसरे के सामने पीछे वाली ताकतें बिठा रही थीं दोस्त। मैं तो बस एक मुखौटा था, जिसका नाम राजा था, असली ताकतें परदे के पीछे थीं।”
सिपाही को अब असली झटका लगा। वह जिस राजा के लिए लड़ रहा था, वह बस मुखौटा था। यानी उसकी देशभक्ति, मातृभूमि के लिए मर मिटने का जज्बा सब निरर्थक था। उसका इस्तेमाल किया जा रहा था। उसने अपने साथी सिपाही को मार दिया और अपने देश का नारा लगाया, जो कि कहीं था ही नहीं। यह तो सरासर धोखा है। उसने साहस करके एक सवाल और किया—“हुजूर, इसका मतलब कि सामने वाला राजा भी अपनी मरजी से लड़ने नहीं आया था।”
“नहीं, वह भी कठपुतली ही है। उसे भी लाकर बिसात पर बिठा दिया गया था। देखो, सामने पड़ा है, मगर मरा नहीं है, कठपुतलियाँ मरा नहीं करतीं। उन्हें तो रोज तमाशा दिखाना होता है। कल फिर बिसात बिछेगी। कल फिर हमें मरना है अपने पूरे परिवार सहित।”
“आपको पता है तो आप विरोध क्यों नहीं करते? आप तो राजा हैं, हम अदने से सिपाही हैं तो हम विरोध नहीं कर सकते, लेकिन आप तो!”
राजा हँसा, जो वास्तव में रोने की तरह था। उसने धीरे से कहा, “तुम नहीं जानते दोस्त। हाथों की ताकत बेशुमार है। वह रोज हमारे-तुम्हारे जैसे हजारों प्यादों को बनाता और मिटाता है। मैंने यदि उसकी मरजी से हिलना छोड़ दिया तो मेरी जगह दूसरे को राजा के खाने में डाल देगा।”
“मगर राज तो आपका है, ऐसे कैसे कोई राजा बदल देगा?” 
“राज भी उसी का और राजा भी। मेरा ही नहीं, पूरी दुनिया की बिसात पर उनके ताकतवर हाथ खेल रहे हैं। उनके इरादे से राजा बनते और हटते हैं। अधिक मत सोचो, तैयार रहो, कभी भी तुम्हें बुलाने आ जाएँगे। आज भी युद्ध का खेल होगा। सुना है, महीने भर तक खेल चलेगा। दुनिया भर के खिलाड़ी जमा हो रहे हैं। हमें रोज ही मरना और जीना है।”
“मतलब हमारी कोई इच्छा या अनिच्छा नहीं है।”
“हम बने ही बिसात के लिए हैं, दोस्त।” 

जवाहर नवोदय विद्यालय सुखासन
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