फाइल मिल गई

फाइल मिल गई

यमराज का विशाल न्यायालय आत्माओं से खचाखच भरा हुआ था। न्याय के सिंहासन पर यमराज विराजमान थे। वे एक आत्मा के पाप-पुण्य के बारे में अपने अकाउंटेंट चित्रगुप्त के मुख से सुन रहे थे।

कई आत्माएँ कतारबद्ध खड़ी अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही थीं। इतने में एक यमदूत एक आत्मा को लेकर उपस्थित हुआ। यमदूत ने अपनी कमर को नब्बे डिग्री के कोण पर झुकाते हुए यमराज को प्रणाम किया।

‘‘महाराज की जय हो!’’

यमराज ने ओ.के. में सिर हिलाया और साथ आई हुई आत्मा को घूरकर देखा। फिर यमराज ने एक हुंकार भरी, तो बाहर मोर्चे में खडे़ उनके वाहन यानी भैंसे ने भी हुंकार का प्रत्युत्तर दिया। यमराज ने गंभीर घोष करते हुए कहा, ‘‘तुम इस दुरात्मा को ले ही आए।’’

‘‘जी, महाराज!’’ यमदूत ने झुककर विनम्रतापूर्वक कहा।

‘‘यह बड़ी दुरात्मा है। इसने तुम्हें परेशान तो नहीं किया?’’ यमराज ने दुरात्मा को क्रोध की दृष्टि से देखते हुए यमदूत से पूछा।

‘‘महाराज! इस दुरात्मा ने बड़ी मुश्किल से अपना शरीर छोड़ा। मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी।’’ यमदूत ने अपनी परेशानी बयाँ करते हुए कहा।

‘‘हाँ, मैं जानता था, यह बड़ी मुश्किल से ही यहाँ आएगी! खैर, अब तुम बँगले पर जाकर मैडम से मिलो। वे कोई काम बताएँगी, उसे करके फिर अपने घर चले जाना।’’ यमराज ने उसे आदेश देते हुए कहा।

‘‘जो आज्ञा प्रभु!’’ यह कहकर यमदूत बाहर निकल गया।

पहलेवाली आत्मा का निर्णय करने के पश्चात् यमराज ने चित्रगुप्त से कहा, ‘‘इस दुष्टात्मा का प्रकरण पहले ले लो।’’

‘‘जी, अभी प्रस्तुत करता हूँ।’’ कहकर चित्रगुप्त उसकी फाइल ढूँढ़ने लगे।

वह दुष्टात्मा यमराज और चित्रगुप्त को टुकुर-टुकुर देखती रही।

जब काफी देर तक फाइल नहीं मिली, तो यमराज झल्लाकर बोले, ‘‘क्या आज फाइल पुटअप करने का मूड नहीं है, चित्रगुप्त!’’

‘‘प्रभो! वही ढूँढ़ रहा हूँ, पता नहीं कहाँ रखने में आ गई।’’ चित्रगुप्त अलमारी में फाइलों की उठापटक करते हुए बोले।

‘‘तो इसका मतलब तुम फाइलों को जहाँ चाहे रख देते हो!’’ यमराज ने घोर गर्जन करते हुए कहा।

गर्जन सुनकर न्यायालय में सभी कर्मचारी और आत्माएँ सन्नाटे में आ गए। इधर चित्रगुप्त काँपने लगे। किंतु कुछ बोले नहीं। न्यायालय में उपस्थित सभी की दृष्टि चित्रगुप्त पर ही लगी थी।

चित्रगुप्त फाइलों में उस प्रकरण को ढूँढ़ते हुए पसीना-पसीना हो गए। चिंता की लकीरें उनके ललाट पर स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थीं।

यह देखकर वह आत्मा, जिसे दुष्टात्मा से संबोधित किया था, ने व्यंग्यात्मक मुसकान के साथ यमराज की ओर देखा, तो यमराज की आँखों से क्रोध की चिनगारी बरसने लगी। वे उसे देखकर बोले, ‘‘तुम क्यों हँस रहे हो?’’

‘‘प्रभो! लगता है, आपके न्यायालय में भी वैसी ही धाँधली है, जैसी पृथ्वीलोक के न्यायालय में है।’’

यह सुनकर यमराज के तन-बदन में आग लग गई। उनकी भुजाएँ और मूँछें एक साथ फड़क उठीं। वे चीखकर बोले, ‘‘तुम मेरे कोर्ट की तौहीन कर रहे हो? यहाँ धाँधली रूपी परिंदा भी पर नहीं मार सकता!’’

‘‘भले ही वह प्रकरण मार देता हो!’’ धीरे से उस आत्मा ने कहा, तो यमराज के सुकर्णों ने तुरंत सुन लिया। वे फिर चीखे—

‘‘क्या बका तुमने?’’

‘‘कुछ नहीं प्रभो! मैं तो सिर्फ यही कह रहा था कि जब धाँधली नहीं है, तो फिर प्रकरण यानी फाइल कहाँ गायब हो गई?’’ उस आत्मा ने धीरे से कहा।

‘‘क्यों चित्रगुप्त! यह दुष्टात्मा क्या कह रही है?’’

‘‘प्रभो! यह व्यर्थ बकवास कर रही है। अभी उसकी फाइल खोलकर इसके पापों का हिसाब बताता हूँ।’’ चित्रगुप्त ने फिर फाइलों को उलटते-पलटते हुए कहा।

यमराज अधीरता से चित्रगुप्त की हरकत देखकर आग-बबूला होते रहे। उधर वह आत्मा व्यंग्य से मुसकराती रही। यमराज जैसे-तैसे अपने आपको कंट्रोल किए हुए थे। जब उन्होंने उस आत्मा को व्यंग्य से मुसकराते हुए देखा तो पूछ बैठे, ‘‘कहीं वह फाइल तुमने तो गायब नहीं कर दी?’’

‘‘प्रभो! मैं तो अभी-अभी आपके सामने उपस्थित हुआ हूँ, भला मैं ऐसा निकृष्ट कार्य कैसे कर सकता हूँ!’’

‘‘क्या भरोसा, तुम जैसी दुष्टात्मा कुछ भी कर सकती हैं!’’ यमराज ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा।

‘‘प्रभो! मैंने जीवन भर पापकर्म किए हैं। यहाँ तक कि झूठ, बेईमानी, धोखेबाजी, चोरी, ठगी, सभी कुछ, लेकिन फाइल जैसी चीज की चोरी कभी नहीं की।’’

उस आत्मा की बात सुनकर यमराज दाँत पीसकर बोले, ‘‘ठीक है! ठीक है! तुमने क्या किया, क्या नहीं, यह सब पता चल जाएगा, जरा तुम्हारी फाइल तो मिले।’’

फिर चित्रगुप्त को संबोधित करते हुए बोले, ‘‘चित्रगुप्त! यदि आज तुमने फाइल ढूँढ़कर मेरे सामने पुटअप नहीं की, तो तुम्हारी खैर नहीं! मैं तुम्हें सस्पेंड कर दूँगा।’’

यह सुनकर चित्रगुप्त के हाथ-पाँव फूल गए। घबराहट में उनके हाथ से एक फाइल छूटकर नीचे गिर पड़ी। जैसे ही उन्होंने नीचे झुककर उसे उठाया, तो वह वही फाइल थी। वे हर्ष से उछल पडे़ और बोले, ‘‘प्रभु! मिल गई फाइल! मिल गई!’’

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