हिंदी दिवस (१४ सितंबर) पर विशेष : संयुक्त राष्ट्र की भाषा बने हिंदी

हिंदी दिवस (१४ सितंबर) पर विशेष : संयुक्त राष्ट्र की भाषा बने हिंदी

गौरीशंकर वैश्य 'विनम्र': सुपरिचित लेखक।दानवीर भामाशाह’, ‘राजा टोडरमल’, ‘नर नारायण नरोत्तम’ (खंडकाव्य), बाल विज्ञान कविताएँ, पर्यावरणीय बाल कविताएँ, बाल रश्मि, अवधी बाल कविताएँ, विनम्र बाल पहेलियाँ सहित बाल साहित्य की दस पुस्तकें। सोहनलाल द्विवेदी बाल कविता सम्मान, साहित्य गौरव सम्मान सहित अनेक सम्मान।

भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी पाँच भाषाएँ विश्व की १६ प्रमुख भाषाओं की सूची में सम्मिलित हैं। १६० देशों के लोग भारतीय भाषाएँ बोलते हैं, विश्व के ९३ देश ऐसे हैं, जिनमें हिंदी जीवन के बहुआयामों से जुड़ी होने के साथ विद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाई जाती है। चीनी भाषा मंदारिन बोलनेवालों की संख्या हिंदी बोलनेवालों से अधिक अवश्य है, किंतु अपनी चित्रात्मक जटिलता के कारण इसे बोलनेवालों का क्षेत्र चीन तक ही सीमित है।

भारत में दीर्घकाल तक शासकों की भाषा रही अंग्रेजी का शासकीय, शिक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में प्रयोग तो अधिक है, परंतु उसके बोलनेवाले हिंदी-भाषियों से कम हैं। प्रारंभ में संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी और चीनी थीं। ये भाषाएँ अपनी विलक्षणता या अधिक बोली जाने के कारण नहीं, अपितु संयुक्त राष्ट्र की भाषा इसलिए बन सकीं, क्योंकि ये विजेता महाशक्तियों की भाषाएँ थीं। बाद में इनमें अरबी और स्पेनिश सम्मिलित कर ली गईं। विश्वपटल पर हिंदी-भाषियों की संख्या दूसरे स्थान पर होने के बाद भी इसे संयुक्त राष्ट्र में नहीं लिया गया। यदि भारतीय और अनिवासी भारतीयों को जोड़ लिया जाए तो हिंदी विश्व में प्रथम स्थान पर खड़ी हो जाती है।

भाषाई आँकड़ों की दृष्टि से सर्वाधिक प्रमाणित जानकारी के अनुसार संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक छह भाषाओं में हिंदी की स्थिति निम्नवत् है—मंदारिन चीनी ८०, हिंदी ५५, स्पेनिश ४०, अंग्रेजी ४०, अरबी २०, रूसी १७, फ्रांसीसी ९ करोड़। इससे स्पष्ट है कि हिंदी संयुक्त राष्ट्र की भाषाओं के साथ अग्रिम पंक्ति में रहने का अधिकार रखती है। विश्व भाषाई पत्रक स्रोत ग्रंथ ‘लैंग्वेज एेंड स्पीक कम्युनिटीज’ के अनुसार विश्व में ९६.६० करोड़ लोग हिंदी बोलते तथा समझते हैं, अर्थात् हिंदी का स्थान मंदारिन के ऊपर है। इस प्रकार संख्याबल की दृष्टि से विश्व में हिंदी की स्थिति अत्यंत सुदृढ़ है। केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा संयुक्त राष्ट्र को भेजी गई रिपोर्ट में विश्व ग्रंथों को आँकड़ों का आधार बनाया गया, जिसके अनुसार भी हिंदी को अन्य विश्व भाषाओं से उच्च स्थान पर पाया गया।

विश्व में हिंदी की धाक

विश्व में दिन-प्रति-दिन हिंदी की धाक जम रही है, यह तथ्य निम्नांकित गतिविधियों से स्वतः स्पष्ट है—

• विश्वभर में १५० से अधिक देशों के २०० विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है।

• फिजी, माॅरीशस, गुयाना, सूरीनाम, मलेशिया, टोबैगो आदि देशों में हिंदी अल्पसंख्यक भाषा है।

• भारत को सुचारु रूप से जानने के लिए विश्व में लगभग १२५ शिक्षण संस्थानों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है।

• जर्मनी के १५ विश्वविद्यालयों ने हिंदी भाषा और साहित्य के अध्ययन को अपनाया है। कई संगठन हिंदी का प्रचार कर रहे हैं।

• अमेरिका के ३२ विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में हिंदी पढ़ाई जा रही है।

• चीन में १९४२ से हिंदी अध्ययन शुरू हो चुका है। १९५७ से हिंदी साहित्य का चीनी में अनुवाद कार्य आरंभ हो चुका है।

• संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबूधाबी ने अरबी और अंग्रेजी के बाद हिंदी को अपनी अदालतों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में सम्मिलित किया है। यह हिंदी को विश्व में मिल रहे सम्मान का एक प्रतीक है।

• विदेशों में २५ से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही हैं।

• यू.ए.ई. में हम ‘एफ.एम.’ सहित अनेक देश हिंदी कार्यक्रम प्रसारित करते हैं, जिसमें बी.बी.सी., जर्मनी के डायचे बेले, जापान के एन.एच.के. वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

एक अध्ययन के अनुसार हिंदी सामग्री की खपत लगभग ९४ प्रतिशत तक बढ़ी है। हर पाँच में एक व्यक्ति हिंदी में इंटेरनेट प्रयोग करता है। फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप में हिंदी लिख सकते हैं। इसके लिए गूगल हिंदी इनपुट, लिपिक डॉट—इन जैसे अनेक सॉफ्टवेयर और स्मार्टफोन एप्लीकेशन उपलब्ध हैं। हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद भी संभव है।

ट्विटर शैली पर बनाया मूषक

सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट की भाँति हिंदीभाषी लोगों के लिए पुणे के अनुराग गौड़ और उनके साथियों ने ‘मूषक’ नामक सोशल नेटवर्किंग साइट बनाई है। इसमें ट्विटर की १४० शब्दों की सीमा की अपेक्षा शब्द-सीमा पाँच सौ है। इसे इंटरनेट पर डब्ल्यू.डब्ल्यू.डब्ल्यू. और मूषक डॉट इन पर खोला जा सकता है। इसमें किसी भी हिंदी शब्द को रोमन में लिखने पर उसका हिंदी विकल्प नीचे आ जाता है। उसे चुनकर हिंदी में लिखा जा सकता है।

विश्व में छाई है हिंदी

हिंदी भारत के अतिरिक्त नेपाल, माॅरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, सिंगापुर, भूटान, इंडोनेशिया, त्रिनिदाद, टोबैगो, बांग्लादेश और पाकिस्तान में खूब बोली एवं समझी जाती है। भारत की राजभाषा हिंदी है और पाकिस्तान की उर्दू। इन दोनों भाषाओं के बोलने में एकरूपता है। दोनों देशों के लोग लगभग ६० देशों में आजीविका के लिए वहाँ निवास करते हैं। इनकी संपर्क भाषा हिंदी मिश्रित उर्दू है। विश्व के लगभग दो करोड़ लोग फिल्मों और दूरदर्शन के माध्यम से भी हिंदी का निरंतर प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी ने विदेशों में हिंदी में उद्बोधन देकर यह प्रमाणित कर दिया है कि हिंदी बोलने और समझनेवाले लोग विश्व में अधिकतर देशों में हैं। इस परिदृश्य में हिंदी को तुरंत संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन जाना चाहिए, किंतु विश्वपटल पर भाषाएँ भी राजनीति की शिकार हैं। जो देश अपनी बात मनवाने के लिए लड़ाई को तत्पर हो जाते हैं, वे सभी देश अपनी-अपनी मातृभाषाओं को संयुक्त राष्ट्र में स्थान दिलाने में सफल रहे हैं। अब हिंदी विश्वपटल पर व्यापार, सूचना और विज्ञापन की सशक्त भाषा के रूप में उभर आई है। भारत सहित अन्य एशियाई देश हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में अपनाने लगे हैं। अब हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने में अधिक देर नहीं है।

हिंदी कैसे बनेगी संयुक्त राष्ट्र की भाषा

१४ सितंबर, १९४९ को संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। संविधान के अनुच्छेद ३४३ में यह प्रावधान किया गया है कि देवनागरी लिपि के साथ हिंदी भारत की राजभाषा होगी। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर १९५३ से देश में प्रतिवर्ष १४ सितंबर ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा, तब से हिंदी को बढ़ावा देने का क्रम निरंतर जारी है। गर्व का विषय है कि वर्ष २००६ से १० जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ भी मनाया जा रहा है। इसका प्रथम और प्रमुख उद्देश्य ही है, हिंदी को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करना। अनेक व्यवधानों के बाद अभी तक हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है।

संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या १९३ है। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए एक प्रस्ताव लाना होगा, जिस पर सदस्य देशों के दो-तिहाई सदस्यों अर्थात् १२९ देशों को हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के पक्ष में ‘मत’ देना होगा और इसी प्रक्रिया के लिए वित्तीय लागत भी साझा करनी होगी। इसके लिए देश के नेतृत्व को पहल करनी होगी तथा आर्थिक रूप से कमजोर देशों को तैयार करना होगा। हिंदी-प्रेमियों का यह दायित्व बनता है कि वे इस दिशा में उचित पहल करें, जिससे पहले तो हिंदी राष्ट्रीय एजेंडे में शामिल हो और फिर इसकी अगली कड़ी में संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने का अभियान चलाया जाए।

हिंदी यदि संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन जाती है तो हमें सुरक्षा परिषद् में भी स्थान मिल जाएगा। साथ ही अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों, जैसे अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय दूर संचार सेवा, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल-आपात निधि विश्व मंचों पर देश को हिंदी के माध्यम से संवाद करने तथा अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार मिल जाएगा। इससे देश के आत्मगौरव में वृद्धि होगी।

इस दिशा में १० जून, २०२२ को हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के लिए एक ऐतिहासिक दिन सिद्ध हुआ, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित बहुभाषावाद संबंधी प्रस्ताव में पहली बार हिंदी भाषा का उल्लेख हुआ। प्रस्ताव में बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए आधिकारिक भाषाओं के अतिरिक्त हिंदी, बांग्ला, उर्दू, पुर्तगाली, स्वाहिली और फारसी को संयुक्त राष्ट्र के कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार किया गया।

वर्ष २०१८ से ही भारत संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग के साथ साझेदारी कर रहा है, जिसका लक्ष्य हिंदी भाषा में संयुक्त राष्ट्र की पहुँच को बढ़ावा देना और विश्वभर के हिंदी बोलनेवालों को जोड़ना है।

हिंदी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन जाती है तो इसे देश की राष्ट्रभाषा बनने में भी अधिक समय नहीं लगेगा। ऐसा होता है तो भारतवासियों के लिए भाषाई दासता से मुक्ति का द्वार खुल जाएगा। संयुक्त राष्ट्र की सातवीं भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता दिलाने के अथक प्रयास जारी हैं। आशा की जानी चाहिए कि हिंदी के लिए वर्तमान सशक्त नेतृत्व, सकारात्मक परिवेश और अवसर एक दुर्लभ संयोग है। अतः इस शुभकाल में हिंदी को जनभाषा से संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने की पहल अवश्य सफल सिद्ध होगी।

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