चलते हैं वीर निज प्राण ले हथेली पर

चलते हैं वीर निज प्राण ले हथेली पर

:  एक :

मैया ने तिलक कर भेजा था, जो रणथल

देखने को दृश्य वो विराट् नहीं मिला है,

चलते हैं वीर निज प्राण ले हथेली पर

विजय का मार्ग तो सपाट नहीं मिला है।

सुध-बुध भूल गए रिश्ते घर आँगन के

ममता के द्वार को कपाट नहीं मिला है,

इंच-इंच टुकड़ों में खोज रही माई, किंतु

चूमने को लाल का ललाट नहीं मिला है॥

:  दो :

लाल का ललाट था विराट् शैलराट सा

सूर्य को गुरूर लाल तेरी लालिमाई पर,

भेड़ियों ने छल से जो घेर लिया सिंह को तो

क्रूरता भी घबराई ऐसी क्रूरताई पर।

लिपटा तिरंगा और अंग–अंग भंग मिले

शूरवीर बहन थी नहीं घबराई पर,

अश्रुधारा थामकर जै हिंद कहते हुए

बाँध आई राखी वह टूटी सी कलाई पर॥

:  तीन :

वीर का शरीर जब छिन्न-भिन्न आ गया तो

दो बूढ़ों के ख्वाव साथ-साथ छूटने लगे,

रूठ गई डाली और रूठ गए माई-बाप

मित्र नंदू और बंधु सभी रुठने लगे।

लल्ला की अम्मा ने सुनी चीत्कार जब

चीख-चीख हूक उठी और टूटने लगे,

हाय रे विधाता तूने खेल कैसा खेल दिया

फूटी हुई आँख से भी आँसू फूटने लगे॥

 

५७५, नया तिलक नगर
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